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प्याज की कीमत: महामारी या कालाबाजारी

मेरे शब्द मेरे हथियार
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आज सुबह उठकर अलसाते हुए जब मैंने टीवी चलाया तो प्याज की बढ़ी कीमत के बारे में सुनते ही मेरी सारी सुस्ती ऐसे गायब हो गयी जैसे गधे के सिर से सींग। प्याज की कीमत मात्र दो दिन में 30 रूपये से 75 रूपये हो गयी थी। जब मैंने इस समाचार को विस्तार से सुना तो मुझे पता लगा कि प्याज की इस आसमान छूती कीमत का प्रमुख कारण है बादलों का अधिक बरसना। पर ना जाने क्यों मुझे इस कारण ने इतना प्रभावित नहीं किया। मेरा विश्लेषक मस्तिष्क इसके पीछे छुपे कारण ढूँढने लगा। मैंने इससे सम्बंधित तथ्यों की छानबीन की परन्तु मुझे पूर्व में कोई भी ऐसा उल्लेख या चेतावनी नहीं मिली जिसके अनुसार अत्यधिक बारिश प्याज की कीमतों पर इतना अधिक प्रभाव डाल सकती है। फिर मैंने जब इसकी अन्य संभावनाओं पर विचार किया तो मेरा दिमाग सबसे पहले कालाबाजारी की सम्भावना पर आ कर रुका। मैं कोई जासूस नहीं हूँ। मैं कोई भ्रष्टाचार निरोधी दल का सदस्य नहीं हूँ। मैं स्वतंत्र भारत का एक जागरूक नागरिक हूँ जो देश की समस्या से व्याकुल होता है और महंगाई से घबराता है इसलिए मुझे अधिकार है अपने विचार व्यक्त करने का और किसी अप्रिय सम्भावना पर चर्चा करने का। इसी चर्चा के अंतर्गत मैं कह रहा था कि इस असामान्य और असंभावित मूल्य बढ़ोतरी के तार कहीं ना कहीं जमाखोरी से जुड़े हो सकते हैं। अब क्योंकि शादियों का समय चल रहा है इसलिए लोग किसी भी कीमत पर प्याज जरुर खरीदेंगे शायद इसलिए प्याज के व्यापारियों ने इस बढ़ती मांग का लाभ उठाने के लिए जमाखोरी की हो। यह मात्र सम्भावना है परन्तु तथ्यों का मार्ग सम्भावनाओं के गलियारे से होकर गुजरता है। सरकार को चाहिए वह इसकी जाँच करवाए और प्याज के गोदामों पर छापे मरवाए। ताकि यह साफ हो सके कि यह महामारी है या कालाबाजारी।
इस विषय पर कुछ पंक्तियाँ कहना चाहूँगा…..
सुन रहा हूँ कि आज कि तिजोरियों की सेल अचानक बढ़ गयी है,
हर किसी को चोरी के डर से बड़े तालों की जरुरत पड़ गयी है।
कारण पूछा तो जाना कि प्याज की कीमत आज इतनी बढ़ गयी है,
कि सभी चोरों की नज़र सोने को छोड़ अब प्याज पर पड़ गयी है।

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